Saturday 31 May 2014


अपनी पुरातन गरिमामयी जमीन तलाशता अफगानिस्तान

आज जिस तालिबान से अमेरिका परेशान है, उसी तालिबान ने ही रुसी फौजो को अफगानिस्तान से वापसी करायी थी। चुनावो मे अफगानियो का बढचढ कर मतदान साफ दिखाता है कि अफगानिस्तान  अब लोकतंत्र कायम कर फिर प्रगति के रास्ते पर दौडना चाहता है तालिबानियो का लोगो की मतदान वाली उंगलियो का काट देना, अभी भी अफ्गानिस्तान मे तालिबान की सक्रियता की तरफ इशारा करता है तो वही मतदान प्रतिशत अफगानियो के बुलन्द हौसलो को भी दर्शाता है। अशरफ घानी हो या अबदुल्ला आज अफ्गानिस्तान अपनी चुनी हुई सरकार पाने के लिए लालायित है। अफगानिस्तान विश्वपटल पर अपनी पुरातन गरिमामयी  उपस्थिती दर्ज कराना चाहता है हालांकि वर्तमान मे चारो ओर जमीन से घिरा अफगानिस्तान आज अपनी पुरातन गरिमामयी जमीन तलाशता नजर आ रहा है। कुछ इत्तफाक ऐसे होते है कि उनकी सामयिक विवेचना करने की जरुरत महसूस हो ही जाती है। यहाँ यह जानना जरुरी हो जाता है कि अफगानिस्तान की दोस्ती पर कुछ देश अपना अधिकार समझते है और अफगानिस्तान के कही भी दोस्ती के बढते कदम उन्हे नागवार गुजरते है। भौगोलिक स्तिथि का हवाला देते हुए पाकिस्तान कई बार अफगानिस्तान को इशारा कर चुका है कि अफगानिस्तान की जरुरते पाकिस्तान के बिना पूरी नही हो सकती, पाकिस्तान से ही दोस्ती करना अफगानिस्तान की मजबूरी बताने की कोशिश की जाती रहती है। 

भारत मे चुनाव के परिणाम आना और प्रधानमंत्री के शपथ लेने के बीच अफगानिस्तान मे हुआ घटनाक्रम ध्यान खीचता है। हाल ही मे हैरात मे भारतीय दूतावास पर हमला वैसे कोई पहला हमला नही था, लेकिन इस समय यह हमला विशेष इशारा देता हुआ दिखायी देता है। पहले भी भारतीय दूतावास पर ऐसे हमले हो चुके है, २००८ मे भारतीय दूतावास मे कार बम धमाका जिसमे ६० लोगो की जाने चली गयी थी २००१ से सामुहिक सेना की मोजुदगी के चलते हुए अमेरीकी राष्ट्रपति का अफगानिस्तान का गुप्त दौरा कहे या औचक दौरा कई सवाल खडे करता है। अमेरीकी राष्ट्रपति के अफगानिस्तान दौरे से अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार को भी अंधेरे मे रक्खा गया, बेगराम के अमेरीकी ट्रुप्स मे अमेरीकी राष्ट्रपति के दौरे मे अफगानिस्तान राष्ट्रपति से भी कोई मुलाकात नही हुई, ना अफगानिस्तान राष्ट्रपति बेगराम आये और ना अमेरीकी राष्ट्रपति काबुल गये, अफगानिस्तान राष्ट्रपति ने अमेरीकी राष्ट्रपति के बेगराम मे मिलने की इच्छा को भी यह कह कर टाल दिया कि यदि अमेरीकी राष्ट्रपति काबुल आते है तो हम उनका पूरे जोश से स्वागत करेंगे यदि व्हाइट हाउस काबुल का दिल जीतना चाहता है तो अमेरीका को अपनी नीतियो के बारे मे पुनर्विचार करना होगा इन सबके बावजूद भारत और अफगानिस्तान के संबंधो की गर्माहट मे कोई कमी नही आई है, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अहमद करजई के हालिया भारत दौरे मे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  ने अफगानिस्तान को हर सम्भव मदद जारी रखने का वादा दौहराया है। इससे भारत और अफगानिस्तान के आपसी संबंध ज्यादा प्रगाढ हुए है क्षेत्रीय शान्ति बनाने की दिशा मे कदम बढाते हुए पाकिस्तान को भी अब ये सोचना पडेगा कि यदि पाकिस्तान अपनी तरक्की के लिए चीन से व्यापारिक संबंध बना सकता है तो अफगानिस्तान भी भारत से अपने संबंध प्रगाढ करने का उतना ही अधिकार रखता है

शान्ति बनाये रखने के लिए आपसी विश्वास का माहोल बनाने की जरुरत है, और ये उसके लिए एक उपयुक्त समय है पाकिस्तान मे आज एक मजबूत सरकार है जो कट्टरपंथियो पर दबाव बना सकती है और क्षेत्र मे जड जमा चुके आतंकवाद से कदम से कदम मिलाकर टक्कर ली जा सकती है अपार सम्भावनाओ वाले इस  एशियान समूह को पुनः चहुमुखी तरक्की के लिए मिलकर शन्तिपूर्ण माहौल बनाने के लिए त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है।

Friday 30 May 2014


सतयुगी नही अब मानवी समुन्द्र मंथन
समुन्द्र केवल सतही विशाल नही है दिल से भी विशाल है, समुन्द्र के अनन्त मंथन सम्भव है। सतयुगी समुन्द्र मंथन अन्तिम समुन्द्र मंथन नही था। सतयुगी मंथन मे जो भी निकला, सब देवताओ और दानवो मे बँट गया। बेचारे मानवो को कुछ भी नही मिला, मानव पूरी तरह खाली हाथ रह गये। बस उसी दिन मानवो ने ठान लिया कि अब हम खुद ही समुन्द्र मंथन करेंगे और जहर, अमृत, रत्न, सुरा जो भी निकलेगा, वो किसी को नही देंगे, उसका भोग हम मानव खुद करेंगे। युगो से चल रहा मंथन, आज भी जारी है, यही समुन्द्र की विशालता है। आज भी समुन्द्र मंथन मे सुरा निकलती है, मोती रत्न निकलते है, जहर निकलता है, अमृत निकलता है। मानवो द्वारा क्रियान्वित समुन्द्र मंथन के बाद अपनी अपनी योग्यता के अनुसार या जिसके हाथ जो लग जाय, वह उसे लेकर निकल लेता है। आज का मानव समुन्द्र मंथन जनित सभी तत्वो को बराबर सम्मान के साथ ग्रहण करता है, आज मानव सर्वग्राही है।
हालिया समुन्द्र मंथन कई मायनो मे एतिहासिक रहा। हारना तो कोई भी नही चाहता, सब जीतना ही चाहते है। कुछ मानव सबको हरा दिग्विजयी बनना चाहते है, उनकी दिग्विजय होने की चाहत इतनी तीव्र होती है कि वे समुन्द्र मंथन का भी इंतजार नही करते और सीधा निशाना अमृत पर साधते है। सभी समुन्द्र मंथन मे लगे रहे और उधर वे अपना अमृत लेकर पहले ही दिग्विजयी महसूस करते है। इस मंथन मे बहुत ईमानदारी अपनाई जाती है, नारायण स्वरुप उज्जवल मानव को अपने पुराने मंथन का फल कई दशक के बाद मिला, पहले तो उन्हे खुद यकीन नही हुआ, लेकिन परिक्षणोपरान्त सहर्ष अपने अपने उज्जवल जीवन के लिए स्वीकारोक्ति दी। बडे समुन्द्री मंथन मे कुछ बलिदान भी दिये जाते है, ऐसे बलिदानी मानव के हिस्से मे केवल जहर आता है, जहर पी पीकर अन्दर से उनका गला भी नीला पड चुका है और चेहरा लाल। उनके लाल चेहरे से निकली वाणी भी दहकती लालवाणी लगती थी, काफी मशक्कत और मानमुनव्वल के बाद लालवाणी को शान्त किया जा सका। समुन्द्र मंथन की रस्सी बटते-बटते उनके हाथ मे ठेठ पड गयी, वो हर बार कोहीनूरी राजमुकुट पर अपना दावा ठोकते है और हर बार कोहीनूरी राजमुकुट किसी दूसरे के पास चला जाता है। बलिदान कभी व्यर्थ नही जाता, हो सकता है उस पीढी को उसका फायदा ना मिले लेकिन अगली पीढी को ही सही, फायदा तो फायदा है। स्वराज होगा तो कम से कम कल नाम लेने और महानता का गुनगान करने के लिये कोई तो होगा। ऐसा भी नही है कि आज सभी मानव इस समुन्द्री मंथन मे हिस्सा लेते है, आम मानव को वैसे तो कोई रोकटोक नही है लेकिन ये उसके बसके बात भी नही है। यदि समुन्द्री मंथन मे कुछ पाने की इच्छा है तो महान बनना पडेगा, आममानव को महामानव बनना पडेगा। आममानव यदि किसी तरह इस मे शामिल हो भी गया तो उसे महामानव बनने की भोगवासना का शिकार बता दिया जायेगा, कुछ समय बाद उसे खुद समझ नही आयेगा कि वह आममानव है या महामानव।
माना समुन्द्र मंथन के पास अपार सम्पदा है, इससे जितना दिल मांगेगा उतना पाया जा सकता है, लेकिन अमृत और रत्नो के साथ सुरा और जहर भी निकलता है। एक तरफ समुन्द्र मंथन से प्राप्त अमृत और रत्नो से से सुख और सुकून मिलेगा, वही दूसरी तरफ जहर के कहर के लिए भी तैयार रहना पडेगा और सुरा का सेवन कर कुछ मानवो मे दानवी मुखरता भी सर चढकर बोलेगी, इस दानवी मुखरता के लिए भी तैयार रहना पडेगा।

Monday 26 May 2014


एक सुखद अनुभूति


एकतरफा चुनावी परिणाम से सदा ही एक सुखद अनुभूति मिलती है और उसी दौर को आज महसूस भी किया जा रहा है। अपने अपने द्रष्टिकोण से इन परिणामो को नये युग की शुरुआत, बडी चुनौती, बडी आशाओ का बोझ आदि संज्ञाओ से नवाजा जा रहा है। आरोप प्रत्यारोप और कुछ व्यंग्य बाणो के दौर से आगे निकलकर, अब प्रचंड बहुमत वाली सरकार ने आते ही कुछ मौन संवाद के दर्शन कराये है। चुनौतियाँ बडी है लेकिन आशा के रूप मे प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी सदा से ही चुनौतियो को अपनी इच्छा के दरवाजे से प्रवेश कराते दिखायी दिये है अपने क्षेत्र के महानायक के रुप मे उभरे सचिन तेन्दुलकर हो या अमिताभ बच्चन हो, जब-जब उन पर उनके कार्यक्षेत्र मे उनकी क्षमता और प्रदर्शन पर सवाल उठे, तब-तब उन्होने मौन संवाद का रास्ता अपनाकर, अपने प्रदर्शन से ही उन चुनौतियो का सधा हुआ जबाब दिया।

शपथ ग्रहण समारोह मे ही सार्क देशो की उपस्थिति ने देश के अन्दर और बाहर एक मजबूत संदेश के रुप मे देखा जा रहा है। पडोसियो ने भी सभी चुनौतियो को नकारकर या कहे हालिया मौके की नजाकत को समझते हुए, एक अच्छा निर्णय लिया। भले यह किसी समस्या का निराकरण ना हो लेकिन कूटनीतिक द्रष्टि से एक दिशानिर्धारण मे मददगार तो कहा ही जा सकता है। जो इस समारोह मे शामिल हुए और जो नही भी हुए, सभी को एक संदेश तो गया ही है। अमेरीकी राष्ट्रपति ओबामा की अफगानिस्तान यात्रा मे दिये गये वक्तव्य के अनुसार अभी अफगानिस्तान पूरी तरह सुरक्षित नही है जो (बाइलेटरल सिक्योरिटी एग्रीमैन्ट) बीएसए संधि  की जरुरत को बल देता है बीएसए के अनुसार अमेरीकी फोर्स अफगानिस्तान मे तैनात रह सकती है। अफगानिस्तान राष्ट्रपति अहमद करजई पहले ही बीएसए से अपनी असहमति जाहिर कर चुके है। दक्षिण एशिया के डेढ अरब से ज्यादा जनसंख्या वाले आठ देशो के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को राजनैतिक और व्यापारिक स्तर पर निरन्तर सुद्रढ होना, विश्व पटल पर अपनी बात बेहतर और मजबूत तरीके से रखने मे मददगार होगा। "मिनिमम गवर्नमैंट मैक्सीमम गवर्नैंस" के सिद्धान्त का भी इस समारोह मे आभास हुआ, काफी हद तक सभी को साथ लेकर मिनिमम गवर्नमैंट दिखायी दे रही है, अभी मैक्सीमम गवर्नैंस बाकी है। प्रधानमंत्री के साथ शपथ लेने वाले कौन-कौन होंगे, इस प्रश्न पर सुत्रो की अनुपस्तिथि संगठन पर मजबूत पकड की तरफ इशारा करती है। अभी इतना अच्छा तो है ही कि आज चर्चा मे विकास है, मजबूत नेतृत्व है और भविष्य के लिए आशाये है। लेकिन हर चुनौती पर बार बार अपनी कुशलता को अपने प्रदर्शन से सिद्ध करते रहना पडता है, ऐसा ही होता है।

Thursday 22 May 2014


मुझे एक झोपडी दे दो
(व्यंग्य)
मन्नत मे झोपडी क्या माँग ली, प्राणप्रिया नाराज हो गयी । बोली, सठ्या गये हो क्या? दुनिया अपनी मन्नतो मे बंग्ले, गाडी, ऐशोआराम माँगती है और आप है कि मन्नत मे झोपडी माँग रहे है। प्राणप्रिय एक गहरी साँस लेते हुए, प्राणप्रिया को अपनी मंशा से अवगत कराते है कि जो लोग बंग्ले, गाडी, ऐशो-आराम की मन्नते माँगते है, उनकी मन्नते कभी पूरी नही होती। यहाँ भी कान घुमाकर पकडना पडता है। अब ऊपरवाला भी दुनियादारी के तोरतरीको से भलीभाती वाकिफ हो गया है कि देनेवाले को यदि पता लग जाय कि लेनेवाले का इससे फायदा हो सकता है, तो फिर लेनेवाला भूल जाय कि उसे कुछ मिलने वाला है।

मैने मन्नत मे झोपडी माँगी है और यदि मन्नत पूरी हुई तो इतना तो निश्चित है कि झोपडी के साथ छप्पर भी जरुर होगा। ऊपरवाला जब देता है तो छप्पर फाड कर देता है कभी ऊपरवाले का देने का मन हुआ भी, तो उसके लिए मेरे पास छप्पर होना जरुरी है। बस एक बार झोपडी की मन्नत पूरी हो जाय फिर अपना भी छप्पर फटने का रास्ता खुल जायेगा। जिस दिन मेरा छप्पर फटेगा, उस दिन देखना, मै कैसे और कितनो का लैंटर लगाता हूँ। प्राणप्रिय की क्रूरतम दूरगामी सोच जानकर प्राणप्रिया जी भी गदगद हो गयी और प्राणप्रिय को अपनी कुटिल मुस्कान से नवाजकर सहभागिनी होने का परिचय दिया। किसी को अपने सपनो की हवा भी मत लगने दे, बल्कि उसे महसूस करा कि तेरा जीवन उनके सपनो के लिए ही समर्पित है। उसे सपनो की ठण्डी हवा के झोके दे और मौका लगते ही झोक दे तभी हम अपने सपनो का पताका लहराने मे कामयाबी हासिल कर पायेंगे तभी हवा का झोका आता है और अपने केशो को समेटती प्राणप्रिया अपने प्राणप्रिय के आगोश मे समा जाती है।

Sunday 18 May 2014


नालायक नही छलनायक हूँ मै
(व्यंग्य) यह 22मई2014 द सी एक्सप्रेस मे प्रकाशित हो चुका है
कोई बस इस बात पर यकीन कर ले कि वह नालायक है फिर उसके जीवन मे अपार सम्भावनाए है। लायक की  स्तिथि इस मामले मे बहुत दयनीय है, यदि कोई पढने मे अच्छा है तो उसकी गायक या खिलाडी बनने की सम्भावनाए बहुत कम रह जाती है, यदि कोई गाने लायक है तो उसकी पढने या डाक्टर बनने की सम्भावनाए बहुत कम रह जाती है, यदि कोई डाक्टर बनने लायक है तो उसकी खिलाडी या इंजीनियर बनने की उम्मीद कम रह जाती है, लायक के साथ समस्या ये है कि वह वही बन सकता है जिसके लायक वह है, इसके अलावा दूसरे क्षेत्रो मे कुछ करने की उम्मीद उसके लिए न्यूनतम रह जाती है। इसके उलट नालायक के जीवन मे सारे क्षेत्रो मे सफलता पाने के द्वार खुले रहते है, यदि सही गुरु मिल जाये तो वह जो चाहे बन सकता है, आओ जाने कैसे?
जो डाक्टर बनने लायक नही है, उसके लिए डाक्टर बनना लायक से कही आसान है। करना बस इतना है कि एक जूट का झोला खरीदना है, उसमे कुछ बुखार, खाँसी, दस्त, उल्टी आदि की दवाईयाँ रखनी है, इसके लिए भी दवाईयो की जानकारी जरूरी नही है बस बिमारियो की जानकारी होना जरुरी है, दवाईयो की जानकारी तो मैडिकल स्टोर वाला से मिल जायेगी। इसके बाद सीधे गाँव का रुख करना है और ताऊ को राम राम कर वही जम जाना है, पडोस के गाँव के मरीजो की चार बात करनी है और ताऊ को खाँसी की दवाई थमा कर, अपना व्यस्तता समझाते हुए वहाँ से निकल लेना है। बस अगली बार गाँव मे आकर ताऊ को राम-राम करनी है, मरीज तैयार रखना ताऊ का काम है। ये पढाई किसी मैडिकल कालेज मे नही पढाई जाती, इसलिए वहाँ जाने की जरुरत भी नही है। जितने दिन मे मैडिकल कालेज मे डाक्टर  पढाई करके तैयार होते है, उतने दिन मे तो डाक्टर बनकर बच्चो को अंग्रेजी स्कूल मे पढाई लायक डाक्टरी चल निकलती है। बस इसमे इतना ध्यान रखना है कि मैडिकल कालेज वाले डाक्टर गाँव मे आते नही है और झोले वाले डाक्टर को शहर मे जाना नही है।
मान लिया डाक्टर बनने की इच्छा नही है और गाना लिखने या गाने की इच्छा है तो वह भी बहुत आसान है। गाना लिखने के लिए बस करना इतना है कि शब्दो को जोडतोड कर अन्तशब्द का मिलान करना है, जैसे मेरा ऊँचा मकान/ सामने हलवाई की दुकान/ हलवाई बेईमान, उसका फीका पकवान/ ओए मैन्नी खाना, जी नीखाना, ओए मैन्नी खाना॥ आजकल गाना लिखने के लिए महबूबा, सूरज, चाँद, तारो को परेशानी मे डालने की बिल्कुल जरुरत नही है, थोडी तुकबन्दी हो तो बस बचाकुचा काम ढोल नगाडे पूरा कर देते है। गाने का काम उससे भी आसान है,  आवाज फटा बास भी हो कोई बात नही, उसके लिए आजकल कम्पयूटर है ना। वैसे भी जब अच्छा कम्पयूटराइजड डिजिटल म्युजिक हो तो फिर आवाज सुनता भी कौन है? बस अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए गाने बजाने का काम बिल्कुल आसान है।
मान लिया नालायक होने की गुणवत्ता पर पक्का यकीन है और इंजीनियर बनना है तो उसके लिए इंटर पास करने के बाद बस इतना काम करना है कि इंजीनियरिंग परीक्षा का प्रवेश पत्र मिल जाय, तो समझो इंजीनियर बन गये। केवल परीक्षा प्रवेश पत्र पर ही उपहार स्वरुप लैपटाप लेकर इतने चहेते आ जायेंगे कि अज्ञातवास ही एक मात्र बचने का तरीका है, नही तो मानो कि इंजीनियर बन गये। वैसे इसका शार्टकट भी है किसी अनजान शहर मे किसी नुक्कड वाली स्कूटर वर्कशाप पर एक साल मे ही आटोमोबाइल इंजीनियर तैयार कर दिये जाते है और विदेश मे अच्छी नौकरी भी तुरन्त मिल जाती है। यदि इन सबसे भी काम ना चले तो दिन भर पान के खोखे, नुक्कड की दुकान, असामाजिक काम मे जहाँ मौका लगे, अपनी चोंच लडाईये और सामाजिक छल विज्ञान के विद्वान बन जाइये, इसके बाद ना केवल खुद का उत्थान करने मे सक्षम होंगे बल्कि बहुतो के प्रनेता भी बना जा सकता है। लायक की लायकी की मजबूरी, नालायक की नालायकी की मशहूरी, हे ऊपर वाले ये तेरी कैसी मंजूरी ?

Friday 16 May 2014

युवा जोश की बदलती सोच का परिणाम
(सामयिक) यह लेख 19मई2014 को द सी एक्सप्रेस मे प्रकाशित हो चुका है
ये चुनावी परिणाम युवा जोश की बदलती सोच का परिणाम कहा जा सकता है, सोशल मीडिया, इंटरनैट के माध्यम से  बना एक वैश्विक जुडाव युवाओ को नयी तरह से सोचने का मौका दे रहा है।
ग्लोबलाइजेशन का भरपूर अहसास अबके चुनावी नतीजे दिखा रहे है। ये एक परिवर्तन का आभास करा रहे है कि चिर-परिचित तरीको से आगे बढना सम्भव नही होगा, जो उन तरीको पर अटके रहेंगे, उनके लिए अपना अस्तित्व बचाये रखना आसान नही होगा। जिनको अपने बैंक बैलेंस पर जरूरत से ज्यादा यकीन था, उनको इस बार चुनावी नतीजो ने अब सोचने के लिए मजबूर भी कर दिया होगा। बहुतो से अच्छे तो राजनीति क़ी नयी खिलाडी कहे जानी वाली आम आदमी पार्टी रही जिसने नये प्रचार साधनो का बखूबी प्रयोग किया और अपनी बात जनता तक पहुँचाने मे कई राजनीति के पुराने स्थापितो से बेहतर साबित हुए।
नयी सोच आज अपने बडो की बनायी पगडंडी पर चलने की सोच से अलग सोच रखती है, आज ज्यादातर युवा अपने पुस्तैनी काम से अलग ही अपनी सोच बना, अपनी जिन्दगी का रास्ता खूद ही बना रहे है। राजनीति मे भी सोशल मीडिया से जुडे ये युवा अपनी नयी सोच से ही आगे बढ रहे है, ऐसा ही नही है कि ये चुनावी नतीजे केवल दो महीने का प्रभाव है, इसमे पिछले दस सालो से सोशल मीडिया पर किये गये होमवर्क का भी बहुत बडा योगदान है। आज के दौर मे किसी की सोच को बाँध कर रखना सम्भव नही है। आज वोटर की स्तिथि सही मे यही है "इन्टरनैट जब लगाविंग, नो उल्लु बनाविंग"। तमाम विरोध प्रचारो के बावजूद भी जनता ने उभरते विकास के चेहरे को ही चुना है। वोटर को अपना बैंक बैलेंस समझना आगे किसी के लिए भी आसान नही होगा, जिसको आगे आना है उसे नयी सोच लेकर ही युवा देश के दिमाग मे अपनी जगह बनानी होगी। आज तक जहाँ अपने देश मे अर्थनीति, विदेश नीति, रक्षा नीति आदि पर चुनाव नही लडे जाते या कहे ये बडे मुद्दे नही होते, आने वाले समय मे शायद यही मुद्दे बडे बने और जनता के सामने जाने से पहले राजनेताओ को इन मुद्दो पर तैयार होकर जाना पडे।
दिल्ली मे सभी सीटो पर भाजपा ने छ्यालिस प्रतिशत वोट शेयर के साथ कब्जा किया है, वही ध्यान देना होगा कि दिल्ली मे सभी सीटो पर आआपा तैतीस प्रतिशत वोट शेयर के साथ दूसरे स्थान पर रही है, वही पंजाब मे भी आआपा ने लगभग चौबीस प्रतिशत वोट शेयर के साथ चार सीटो पर कब्जा किया है, इसके अलावा केवल वाराणसी मे ही आआपा कुछ असर दिखा पायी। लेकिन कुल मिलाकर नयी पार्टी होने के बावजूद आआपा ने अपनी उपस्तिथि दर्ज करायी। लोकतंत्र मे प्रतिस्पर्धा की महत्ता को नकारा नही जा सकता और उम्मीद करनी चाहिए आआपा हो या कांग्रेस या कोई दूसरी पार्टी बदलते सामाजिक परिवेश मे बदलती जरुरतो को ध्यान मे रखकर आगे आयेगी।
भाजपा ने अपने ही एक सौ ब्यासी सीटो के रिकार्ड से आगे बढी है और कांग्रेस को भी ऐसे चुनावी परिणाम पहली बार देखने को मिले है, इस लिहाज से ये चुनाव एतिहासिक रहा है। यहाँ से राजनीति एक नयी दिशा लेती दिखायी दे रही है। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर मे परिवर्तन को अपनाना होगा और अपनी मूल सोच को भी लेकर चलना होगा। इन एतिहासिक चुनावी परिणामो ने भाजपा के कंधो पर बोझ बढा दिया है अब देश की दिशा और दशा  पर पूरे विश्व की नजर होगी। आर्थिक स्तर पर भाजपा अपनी कार्यशैली के परिणाम कई राज्यो मे दिखा चुकी है, अब यहाँ विश्व पटल पर किस तरह भाजपा अपनी छाप छोडती है इस पर सबकी नजर है।

Thursday 15 May 2014


आम से अमिया हुई क्रिकेट किसके लिए (व्यंग्य)
"26-मई-2014 को द सी एक्सप्रेस मे प्रकाशित हो चुका है"
बालीवुड
मे भले ही मुन्नी अमिया से आम होकर बदनाम हो गयी हो लेकिन मुन्नी बच्चे की जुबा पर राज कर गयी। क्रिकेट मे ये फार्मुला बिल्कुल उलट कर प्रयोग हुआ है, क्रिकेट पचास के आम से बीस की अमिया हो गया है और हर किसी के दिमाग पर छा गया है। दिन के उजाले वाला सभ्यता का खेल क्रिकेट, आज दूधिया रोशनी मे भव्यता का क्रिकेट हो गया है। अमिया क्रिकेट मैदान पर लाखो की भीड जमा करने मे सक्षम है, जब बात लाख की हो तो शाख का क्या अचार डालना है? आम क्रिकेट आज सभ्यता के मैडल सा खुंटी पर लटका दिखायी देता है।

आम क्रिकेट  उस उन्नीसवी शताब्दी के ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी जैसा हो गया है, जिसका स्विच आन करने के बाद जब तक टीवी गरम हो तब तक तो चित्रहार का एक गाना भी निकल जाय। आम क्रिकेट मे पहले पाच ओवर बल्लेबाज को गरम होने मे लगते थे, उसके बाद स्लिप से फिसलते-फिसलते चुपचाप सभ्यता का परिचय देते हुए गली से अपने गतव्य पर अग्रसर हो जाते थे। स्क्रीन दाये बाये का झमेला, पिच ठोक-ठोक के पिलपिला कर देना, पहली गेंद को शिष्टाचार के नाते रोकना, साथी खिलाडी से चार बात छोकना, ऐसे सभी अनैच्छित चौचले आज के अमिया क्रिकेट मे वर्जित है। अमिया क्रिकेट मे इधर बल्लेबाज आते ही बालर को ठोकता है, उधर सिद्धु जी को अपना चुटकला ठोकते है और लाखो दर्शक ताली ठोकते है, सीधे ठा ठा।
इस अमिया क्रिकेट मे बालर की हालत एक वोटर जैसी हो गयी है, बालर जमे हुए बल्लेबाज को बोल्ड करने के बाद पल भर की खुशियाँ भले मना ले लेकिन आने वाला बल्लेबाज मैदान मे आते ही महीनो से पिंजरे मे बन्द भूखे शेर सा झपट पडता है और बालर की हालत ऐसी हो जाती है जैसे शोले का हस्तविहीन मजबूर ठाकुर। बालर छक्के पर छक्के खाकर पहले ही झुंझलाया हुआ होता है और अल्पचीर सुसज्जित चीयर बालाए जोरदार चीयर करके नाजुक दौर से गुजर रहे बालर के जले पर नमक छिडकने का काम करती है। बल्लेबाज को बोल्ड करने के बाद बालर चीयर बालाओ की तरफ अपना विशेष नृत्य करके अपनी खीज उतारता है। हर छक्के के बाद बल्लेबाज मस्त और बालर पस्त हो जाता है, इस बीच चीयर बालाए इतना पसीना बहा देती है जैसे बल्लेबाज ने बस बल्ला घुमाया हो और इन्होने ही भाग-भाग कर छ रन पूरे किये हो।
अल्पचीर सुसज्जित चीयर बालाये, सिद्धु जी और बल्लेबाज तीनो अन्दर ही अन्दर ऐसे तरबूज से लाल हुए जाते है, जैसे भीड उन्हे ही सबसे ज्यादा चीयर कर रही है। रैड कारपेट की चाह वाले आज कारपेट छोड कारपोरेट की वाह वाह पा रहे है। खिलाडी, बालीवुड और कारपोरेट तीनो के अदभुत संगम मे डुबकी लगाकर, जिसका मौका लग रहा है, वह पुण्य प्राप्त करने से नही चूक रहा है, ये मेला कोई सोलह साल मे थोडे ना लगता है, ये तो हर बरस का मेला है। ये खेल है, खेला है या झमेला है, जो भी है, आज प्रशंसको का बडा मेला है।

Monday 12 May 2014

दूध तेरे कितने रंग
"द सी एक्सप्रेस" मे 14 मई २०१४ मे प्रकाशित 
चाय पियो मस्त जियो, दूध का तो नाम भी मत लो और नाम लेना भी है तो पालीपैक दूध कहो, लोहे की भैस वाला दूध कहो। आस-पास रोब जमाने के लिए थोडी बहुत रहीसी झाड लो ठीक है लेकिन इससे कोई दूध वाला थोडे ना हो जाता है। नींद खुलती है चाय पी कर और शौक दूध वाले, टैक्सवसूली वाले कल ही खबर लेने जायेंगे। वो तो सतयुग था जो जो माखन चोरी हो जाता था, ये कलयुग है अब तो पूरी की पूरी भैस ही चोरी हो जाती है। जिसका हिसाब किताब इतना हो कि भैस गुम हो जाय तो ढुंढवा सके, वही पाल सकता है दूध का शोक, ना तो गलती से भी दूध के नाम की शेखियाँ मारना खतरे से खाली नही है।
पालीपैक या लोहे की भैस के दूध की बात ही अलग है, हाई टैक्नोलाजी से गवर्न होता है पालीपैक या लोहे की भैस का दूध सब गवर्नैन्स का कमाल है। पालीपैक या लोहे की भैस के दूध से बनी चाय पियो और हाईटैक हो जाओ। वहाँ पर हाई टैक्नोलाजी से चारा उगाया और उगाने के बाद खुद नही खाया जाता, केवल दूध वाली भैसो को खिलाया जाता है, हाई टैक्नालाजी से उन भैसो को नहलाया जाता है, उसका नतीजा ये निकलता है कि एक-एक भैस ने दिन मे चार-चार बार बीस-बीस किलो दूध देती है, ज्यादा हो गया क्या? बीस लीटर दूध ज्यादा लग रहा है ? बस यही माडर्न मार्किटिंग टैक्नोलाजी को लाना है, गवर्नैन्स के साथ, फिर देखो कैसे दूधो नहाया जाता है। भैस और पालीपैक या लोहे की भैस के दूध की जाँच का जिम्मा शिवनगरी के पास है कि किसमे कितना है दम। जाँचमैन भी जमे है कि दूध की क्रीम जाँचने, जाँचा जायेगा कि इस दूध से किसकी कितनी भैसो का दूध है और इन भैस के गोबर से कौन गैस बना रहा है। जाँच की जायेगी कि यदि पालीपैक या लोहे की भैस का दूध से चाय बन सकती है तो मैंगो शेक क्यो नही बन सकता, जनता से राय ली जायेगी कि वह इस दूध की वो चाय पीना चाहते है कि मैंगो शेक, तभी होगा दूध का दूध और पानी का पानी। चाय या मैंगो शेक बाद की बात है हर माँ चाहती है कि पहले उसके बच्चे के दूध की पूर्ति हो, होनी भी चाहिए, बेहतर भविष्य कि चिन्ता बच्चो की माँ को ही सबसे ज्यादा होती है।
चाय दूध बस चर्चा चिंतन, मंथन चलता रहेगा, निर्णय लेने का काम ठंडे दिमाग से ही होना चाहिए, इसलिए ठंडा पानी पीना बनता है और कभी-कभी जिसका जैसा स्वाद चाय, मैंगो शेक का स्वाद भी बनता है