अपनी पुरातन गरिमामयी जमीन
तलाशता अफगानिस्तान
आज जिस तालिबान से
अमेरिका परेशान है, उसी तालिबान ने ही रुसी फौजो को अफगानिस्तान से वापसी करायी थी। चुनावो मे अफगानियो का बढचढ कर मतदान साफ दिखाता है कि अफगानिस्तान
अब लोकतंत्र कायम कर फिर प्रगति के रास्ते पर दौडना चाहता है। तालिबानियो का लोगो की मतदान वाली उंगलियो का काट देना, अभी भी अफ्गानिस्तान मे तालिबान की सक्रियता की तरफ इशारा करता है तो वही मतदान प्रतिशत अफगानियो के बुलन्द हौसलो को भी दर्शाता है। अशरफ घानी हो या अबदुल्ला आज अफ्गानिस्तान अपनी चुनी हुई सरकार पाने के लिए लालायित है। अफगानिस्तान विश्वपटल पर
अपनी पुरातन गरिमामयी उपस्थिती दर्ज कराना
चाहता है। हालांकि वर्तमान मे चारो
ओर जमीन से घिरा अफगानिस्तान आज अपनी पुरातन गरिमामयी जमीन तलाशता नजर आ रहा है। कुछ इत्तफाक ऐसे होते है कि
उनकी सामयिक विवेचना करने की जरुरत महसूस हो ही जाती है। यहाँ यह जानना जरुरी हो
जाता है कि अफगानिस्तान की दोस्ती पर कुछ देश अपना अधिकार समझते है और अफगानिस्तान
के कही भी दोस्ती के बढते कदम उन्हे नागवार गुजरते है। भौगोलिक स्तिथि का हवाला
देते हुए पाकिस्तान कई बार अफगानिस्तान को इशारा कर चुका है कि अफगानिस्तान की
जरुरते पाकिस्तान के बिना पूरी नही हो सकती, पाकिस्तान
से ही दोस्ती करना अफगानिस्तान की मजबूरी बताने की कोशिश की जाती रहती है।
भारत मे चुनाव के परिणाम
आना और प्रधानमंत्री के शपथ लेने के बीच अफगानिस्तान मे हुआ घटनाक्रम ध्यान खीचता
है। हाल ही मे हैरात मे
भारतीय दूतावास पर हमला वैसे कोई पहला हमला नही था,
लेकिन इस समय यह हमला विशेष इशारा देता हुआ दिखायी देता है। पहले भी भारतीय दूतावास
पर ऐसे हमले हो चुके है, २००८ मे भारतीय दूतावास
मे कार बम धमाका जिसमे ६० लोगो की जाने चली गयी थी। २००१ से सामुहिक सेना की
मोजुदगी के चलते हुए अमेरीकी राष्ट्रपति का अफगानिस्तान का गुप्त दौरा कहे या औचक
दौरा कई सवाल खडे करता है। अमेरीकी राष्ट्रपति के अफगानिस्तान दौरे से अफगानिस्तान
की चुनी हुई सरकार को भी अंधेरे मे रक्खा गया,
बेगराम के अमेरीकी
ट्रुप्स मे अमेरीकी राष्ट्रपति के दौरे मे अफगानिस्तान राष्ट्रपति से भी कोई
मुलाकात नही हुई, ना अफगानिस्तान
राष्ट्रपति बेगराम आये और ना अमेरीकी राष्ट्रपति काबुल गये, अफगानिस्तान
राष्ट्रपति ने अमेरीकी राष्ट्रपति के बेगराम मे मिलने की इच्छा को भी यह कह कर टाल
दिया कि यदि अमेरीकी राष्ट्रपति काबुल आते है तो हम उनका पूरे जोश से स्वागत
करेंगे। यदि व्हाइट हाउस काबुल का
दिल जीतना चाहता है तो अमेरीका को अपनी नीतियो के बारे मे पुनर्विचार करना होगा। इन सबके बावजूद भारत और
अफगानिस्तान के संबंधो की गर्माहट मे कोई कमी नही आई है, अफगानिस्तान के
राष्ट्रपति अहमद करजई के हालिया भारत दौरे मे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अफगानिस्तान को हर सम्भव मदद जारी रखने का वादा दौहराया
है। इससे भारत और अफगानिस्तान के आपसी संबंध ज्यादा प्रगाढ हुए है। क्षेत्रीय शान्ति बनाने
की दिशा मे कदम बढाते हुए पाकिस्तान को भी अब ये सोचना पडेगा कि यदि पाकिस्तान
अपनी तरक्की के लिए चीन से व्यापारिक संबंध बना सकता है तो अफगानिस्तान भी भारत से
अपने संबंध प्रगाढ करने का उतना ही अधिकार रखता है।
शान्ति बनाये रखने के लिए
आपसी विश्वास का माहोल बनाने की जरुरत है, और ये उसके लिए एक उपयुक्त समय है। पाकिस्तान मे आज एक मजबूत
सरकार है जो कट्टरपंथियो पर दबाव बना सकती है और क्षेत्र मे जड जमा चुके आतंकवाद
से कदम से कदम मिलाकर टक्कर ली जा सकती है। अपार सम्भावनाओ वाले इस एशियान समूह को पुनः चहुमुखी तरक्की के लिए मिलकर शन्तिपूर्ण माहौल बनाने
के लिए त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है।