Friday 5 December 2014


लैपटोप पामटोप परिवार (व्यंग्य)

वैसे जिस परिवार में सब मिल कर रहते हैं और सब मिल-बाँट कर आगे बढते हैं, ऐसे परिवार ठाठ से रहते है और आस-पडोस में उनका दबदबा भी बना रहता है। फिल्म "नये दौर" का एक गीत भी है, "साथी हाथ बढा़ना, एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठानाअर्थात जब कंधो पर भार ज्यादा बढ जाय तो बहादुरी दिखाने के चक्कर में कंधे तुडवाने में कोई अकलमंदी नहीं है। ऐसी स्थिति में मौके की नज़ाकत को समझते हुए, जिसका कंधा हाथ लग जाए अपनी बन्दूक टिका देनी चाहिए। 'बिन सहकार नहीं उद्धार' की उपयोगिता सहकारी बैंको तक ही सीमित नहीं है, सहकारी का मतलब साथ मिलकर किसी कार्य को अन्जाम देना। सहकारिता के नतीजों का विश्लेषण चाहे जैसे कर लिया जाए लेकिन चाहे सहकारी चीनी मिल हो या अन्य संस्थाए, किसने  और  कैसे इनका सदुपयोग किया, ये सर्वविदित है। जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसे ना जाने कितने आदि अनादिवाद ने आज हर साग-भाजी का स्वाद कसैला कर दिया है, समाज को इकट्ठा होकर इन सब वादो से टक्कर लेने के लिए अपना एक नया वाद बनाकर अपने परिवार को मजबूत बनाना एक बेहतर विचार है। आजकल प्रचार का जमाना है सो समाज का प्रचार भी रोजाना माइक से दिन में पाँच बार जोरदार अवाज में होना चाहिए। राह आसान नही है, इधर एक परिवार और उधर ना जाने कितने वाद और कितने विवाद, गालिब कहते हैं, ये इश्क नहीं आसां, इतना समझ लीजै, एक आग का दरिया है और डूबकर जाना है
जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए, हर तरह के फूल, हार में पिरो लिए, ये एक मधुर गीत की कुछ पंक्तियां है, लेकिन परिवार कोई माला तो है नहीं, परिवार तो फूल और कलियों से महकता हुआ पौधा होता है, जिस पर सारे फूल एक जैसी महक देते है और एक जैसे रंग के होते है। रंग बिरंगे फूलो से हार बन सकता है लेकिन ये सारी कशमकश हार के लिए तो की नहीं जा रही, ये सब किया तो जीत के लिए ही जा रहा है। परिवार में सब एक विचार के हो ऐसा भी बिल्कुल जरुरी नहीं है। हमारे यहाँ तो पति-पत्नी तक के रिश्ते भगवान के यहाँ से तय होकर आते है, विचार का क्या है वो भी बाद मे मिला ही लिए जाते है। रंग बिरंगे फूलो की माला वाला ये परिवार आने वाले समय में क्या गुल खिलाएगा, इसका इतिहास से अंदाजा लगाए तो हश्र का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है लेकिन फिर भी एक प्रयोग करने में बुराई भी क्या है, सब कुछ इतिहास से ही तय होगा तो फिर नयी खोज कैसे होगी। भ्रष्टाचार विरोध का समविचार लेकर रामलीला मैदान चाहे कितना जयकारा किया हो, घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही, उनकी जयकार ललकार में बदल गयी।
ये जनता है ये सब जानती है, जनता को बनते-बिगडते परिवारो का काफी अनुभव है। जनता ने मंडल भी देखा है कमंडल भी देखा है, जनता अब इतिहास, कैमिस्ट्री और गणित की सारी समीकरणो का ज्ञान साक्षरता मिशन के तहत पा चुकी है। आज जब जनता खम्बे पर चढकर भाषण सुनती है तो उसके हाथ मे इंटरनेट लगाविंग वाला लैपटोप और पामटोप भी होता है, इसलिए जो अब तक होता आया है अब वो सब आसान नहीं है। ये लैपटाप और पामटोप किसी का सगा नहीं होता, ये तो वही बोलेगा जैसा कि गूगल बाबा का आदेश होगा। आजकल के परिवार वालो को चाहे घर में साथ-साथ बैठे महीनों हो जाए लेकिन वो चौबिसो घंटे लैपटोप या पामटोप पर आनलाइन साथ-साथ रहते हैं, अब वो पुराने वाले परिवारो का जमाना शायद नहीं रहा, अब सब लैपटोप पामटोप परिवार हैं।