Saturday 13 September 2014


नमस्कार, मैं आपका …….

१३ सितम्बर को द सी एक्सप्रेस में प्रकाशित हो चुका है........
नमस्कार की महिमा अपरम्पार है। वो जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है जिसमें कोई नमस्कार से दो चार ना हुआ हो। नमस्कार ना कोई व्यवहार है ना ही कोई सत्कार प्रतीक है, नमस्कार तो सीधा-सीधा व्यापार है या कहें व्यापार का एक हथियार है, इस हाथ नमस्कार को किया स्वीकार, उस हाथ चढ गया मिस्टर नमस्कार का मिस्टर स्वीकार पर उधार। नमस्कार व्यापार क्षेत्र का सबसे बड़ा बाजार है, नमस्कार अपनाओ फिर क्या दिन क्या रात हर पल व्यापार में चमत्कार ही चमत्कार है। एक बार नमस्कार स्वीकार हो जाय, फिर मि॰ स्वीकार के पास जो भी है उस पर मि॰ नमस्कार का पूरा-पूरा अधिकार है। यदि किसी मौके पर मि॰ स्वीकार मि॰ नमस्कार के वायदा कारोबार में खरे नहीं उतरते तो फिर तो सोने पे सुहागा, इसके बाद मि॰ स्वीकार जन्म जन्मान्तर के कर्जदार हो गये। इसके बाद मि॰ नमस्कार के सारे सपनें ब्याज से ही पूरे हो जाने हैं, मूल नमस्कार का उधार अपनी जगह ज्यों का त्यों बरकरार रहेगा। नमस्कार पूर्णतः मुनाफे का बाजार है, नुकसान का  इसमें कही से कही तक नहीं आसार है।

सुबह सुबह घंटी बजी, मिस्टर स्वीकार ने आँख मलते हुए दरवाजा खोला तो देखा कि बत्तीस इंच की मुस्कुराती नमस्कार लिए आ धमके थे मिस्टर नमस्कार। क्यों पहचाना मिस्टर स्वीकार, लोजी मैने भी कैसा सवाल पूछ लिया, कैसे नहीं पहचानेंगे भला अभी  कल ही हुई थी हमारी आपकी नमस्कार। पहले आपकी जान पहचान करा देता हूँ, ये हैं मि॰ स्वीकार और ये हैं हमारे रिश्तेदार, इनकी एक समस्या थी कह रहे थे कि यदि मि॰ स्वीकार चाहें तो हो सकते है समस्यानिराकरण में मददगार। हमने कहा कि इसमें क्या संकोच करना, मि॰ स्वीकार के तो है बहुत उच्च विचार, वो तो हर है हर किसी के मददगार, हमने कहा चलो हो जाओ तैयार, अभी चलते हैं मि॰ स्वीकार के द्वार। मि॰ स्वीकार के पास मदद के अलावा अब कोई रास्ता नहीं था सो मदद हो गई। मि॰ नमस्कार जाते जाते धन्यवाद देना भी नहीं भूले। देखिए मि॰ स्वीकाए यूँ तो कभी मि॰  कुविचार भी हमारे किसी काम को मना नहीं करते लेकिन फिर भी हमने सोचा कि आपसे इस बहाने मुलाकात हो जायेगी। हम अपने काम के लिए तो किसी के पास जाते नही है बस समाज सेवा धर्म ही निभाते है।

कौन कहता है नमस्कार करने वाला लाचार है, नमस्कार करने वाला ही सबसे मालदार है। लाचार तो बेचारा वो है जिसने किया नमस्कार को स्वीकार है। जिसने सबसे ज्यादा किया नमस्कार को स्वीकार है, आज बाजार में वही सबसे ज्यादा  लदा  हुआ कर्जदार है।

ऊह पडोसी, आहा पडोसी
किसी की उन्नति में पडोसी का बड़ा अहम स्थान होता है। पडोसी का ड़सा पानी नहीं मांगता, ऐसा बिल्कुल नहीं है, पडोसी कोई सांप तो है नहीं कि डस लेगा।  पडोसी तो खट्टा मीठा ढोकला है, कभी खट्टा कभी मीठा। स्वाद स्वाद में कोई गपगप ना कर जाए, इसलिए साथ में मिर्ची भी होती है।  जैसे ही कोई स्वाद स्वाद में गपगप करने की कोशिश करता है, मिर्ची भी ढोकले के साथ लपककर उसके गल्लो पर अपना ढोल पीटना शुरु कर देती है। फिर गपगप पडोसी सी सी के म्युजिक के साथ ऊह ऊह मिर्ची आह आह मिर्ची चिल्लाता है। अब कोई चिल्लाए तो चिल्लाता रहे, ढ़ोकले को तो अपने बड़ो की सीख अच्छी तरह याद है, इसलिए ढोकले को तो अपना ढोकला धर्म निभाना है।
धर्म निभाते निभाते आपने ये क्या कर डाला जी, हम तो बस इतना कहा था कि जा पान ले आ, तुमने तो अपने बनारसी पान को ही खतरे में डाल दिया। पान की पीक से लथपथ लाल लाल कोणें ही तो हमारी पहचान है, अपने बनारस को क्योटो बनाने के चक्कर में हमे अपनी पहचान तो मिटानी नहीं है। हमारे गीत तो बेमानी हो जाएंगे, "पान खाए सैंया हमार...", "खैइ के पान बनारस वाला...", ऐसे तो सब गडबड हो जाएगा, सैंया पान नहीं खायेंगे तो क्या खाक सैंया और बिन बनारसी पान कैसे मचेगा धमाल। बिन पान के छोरा बनारस वाला कैसे दिखेगा, वो तो लव इन टोक्यो बन जाएगा। हमने तो कल कोई यहाँ तक कहते सुना है कि टोक्यो वाले भ्रष्टाचार भी नहीं करते हैं। बिन भ्रष्टाचार के तो जीवन में कोई रस ही नहीं रह जाएगा, ट्रेफिक के नियम तोडना, यहाँ वहाँ कूडा फैलाना, आफिस लेट पहुँचना, राष्ट्रीय धरोहर को अपनी धरोहर समझकर उसका भरपूर दुरुपयोग करना आदि के बिन तो हमारा खाया पिया पचना भी नामुमकिन है। भ्रष्टाचार के अमूल्य गुणो के बारे में तो हम ही जानते हैं, रोजमर्रा में जो पेंच पेंचकश से नहीं खुलतें हैं वो सब पेशकश से ही तो खुलतें हैं।
कई सभाओं और चर्चाओं में  डायबिटीज के बारे में ज़िक्र सुना था। यूँ तो चीनी का प्रयोग कम से कम करना स्वास्थ के लिए हितकारी होता है लेकिन डायबिटीज की बिमारी से ग्रस्त रोगी को चीनी से थोड़ी ज्यादा दूरी बनाना ज़रुरी हो जाता है। एक बार किसी को डायबिटीज की बिमारी लग जाय तो फिर छोटी-छोटी बिमारियां भी उसकी तरफ मुँह फाड़े चली आती हैं। सामान चीनी और चीनी पाकिस्तानी, दोनो हमारे यहाँ सुपरहिट हैं, भले ही ये हमारे अपने लघु उघोगो को डायबिटीज का शिकार क्यों ना बना रहीं हों। दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है, चीनी की लालसा में हम एक लाल पहले ही गवां चुके हैं। भले ही आज चीनी हमारे अन्दर प्रवेश कर चुकी हो लेकिन धीरे-धीरे इसके प्रयोग में कमी लायी जाय तो एक दिन इस चीनीजनित डायबिटीज की बिमारी से छुटकारा पाना इतना मुश्किल भी नहीं है। यदि इस चीनी की लालसा से हमने छुटकारा नही पाया तो निश्चित ही एक  दिन हम डायबिटीज के शिकार हो जायेंगे फिर करेले की कडवाहट को भी स्वीकार करना पडेगा।
सामान चीनी हो या चीनी पाकिस्तानी  इनकी नियत को देखते हुए, इनसे नियत दूरी बनाए रखना ही बेहतर होगा। अपने बनारसी पान का कोई जवाब नहीं, जा पान ले आ, पान भी खाएंगे और पान के साथ बुलेट ट्रेन भी चलाएंगे। कोई मिर्चीग्रस्त होता है तो हो जाए, शान्तिपाठ करते करते हम भी त्रस्त ही हो गयें है। हमने तो पहले दिन ही खुद आमंत्रित कर खट्टा मीठा ढोकला खिलाया था, गपगप पडोसी ने समझा कि गपक लेगा, अभी तक ढ़ोकले का मज़ा लिया है ले अब मिर्ची खा।