Tuesday 11 August 2015

 फ़ोटो की योजना नहीं योजना की फ़ोटो

स्मार्ट एक जादुई शब्द है। एक बार किसी को स्मार्ट कहकर तो देखो, चेहरे की लाली बताती है, जैसे स्मार्ट कहते ही उसका हार्ट रिस्टार्ट हो गया हो। स्मार्ट फोन आते ही हर किसी का मन यही कहता है कि आज कुछ तूफानी करते हैं।स्मार्ट होने के लिए जरुरी है बस एक स्मार्ट फोन, चाहे संवेदना संदेश लिखना हो या सैल्फी लेनी हो। स्मार्ट फोन हाथ में हो तो पन्नु पंसारी की दुकान भी वालमार्ट लगने लगती है।
आज हर माडर्न के पास स्मार्ट फोन है और वह स्मार्ट सिटी की तरफ बढ रहा है। आज ना कुछ लिखने की जरुरत होती है, ना पढने की जरुरत है। आज के हर माडर्न के पास एक हैंडल होता है, उस हैंडल से वो फ़ोटो ट्विट, रिट्विट करता है। कौन-सा फ़ोटो कितना ट्विट या रिट्विट होता है, उससे ही तय होता है कि क्या ट्रेंड कर रहा है। ट्रैंड का बैंड बताएगा कि किसका छप्पर फटेगा या किसका लैंटर लगेगा। जो फ़ोटो जितना ट्रेंड करता उस फ़ोटो को उतना ही फुटेज मिलता है। लिखने-पढने वाले लिखते-पढते रहे, उससे कुछ नहीं होता, जब तक फ़ोटो व्हाट्स ऐप, फेसबुक और ट्विटर पर दनादन सैन्ड, शेयर या रिट्विट नहीं होता तब वो ट्रैंड नहीं होता। जो ट्रैंड में नहीं है, उसे फुटेज नहीं है,उसकी बस फुटबाल बनती है।
सेवक चाहे राजनीति के क्षेत्र में हो या सामाजिक क्षेत्र में, हर कोई यही कहता है कि कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो, बस मेरे फ़ोटो सैन्ड, शेयर या रिट्विट करते रहो। तुम्हारे सैन्ड, शेयर या रिट्विट ही मुझे ट्रैंड कराएंगे और मेरे फ़ोटो के ट्रैंड से ही मुझे फुटेज मिलेगा। आज सेवक की इच्छा नहीं है कि कोई उसका फ़ोटो अपने स्मार्ट फोन की स्क्रीन पर सेव करे, आज हर सेवक सैन्ड, शेयर या रिट्विट का सेवन करना चाहता है। सेवक की सेवा के पीछे मेवा के सेवन की लालसा छिपी होती है।
आज किसी को अपने सेवाभाव के बारे में ढिंढोरा पीटने की जरुरत नहीं है क्योंकि इसे सभ्य समाज मे सही भी नहीं माना जाता, सेवककिसी को अपनी सेवा का बस अपना फ़ोटो शेयर करता है। बिन फोटो तो योजना का भी पता लगाना मुश्किल है कि ये योजना किसकी है और किसके लिए है। बिन फोटो की योजना तो ऐसे ही समझी जाएगी ना जैसे बिना पता लिखी चिठ्ठी। जो भी हो अब फोटो की योजना नहीं योजना की फोटो होगी। फ़ोटो के लिए चाहे बिजली के खम्बे पर चढना पडे या बस्ती में डिनर करना पडे या राहत सामग्री के ट्रक को हरी झंडी दिखानी पडे, ऐसे किसी भी फ़ोटो को शेयर करने में कौताही नहीं बरतनी चाहिए, क्योंकि सबसे ज्यादा ट्रैंड में यही फ़ोटो लाते हैं। आज जिसके पास ट्रेंडी फ़ोटो है उसी की फुटेज है।
बिन बादल सब सून, मानसून कम सून” (व्यंग्य)

ना मेघा, ना मानसून, नकली है ये जून या ठेंगा दिखाएगा मानसून। मानसून जी ना जाने क्यों इतनी गर्मी खाए जा रहे हैं, हम इतना मानतान कर इन्हे बुला रहे है और ये अपने हल्केपन का अहसास दिलाकर हमारा अपमान किए जा रहा है। हम चिल्ला रहे हैं कम सून - कम सून, मानसून जी कह रहे हैं कि इन्तजार करो अप टू एण्ड आफ जून हम यहाँ गर्मी से भुन रहे हैं, मानसून जी जाने कहाँ व्यस्त है जो हमारी एक नहीं सुन रहे हैं। मानसून जी क्या आपके आवारा किस्म के बादल कहीं समन्दर की दल-दल में फंस गए है या समन्दर की मौजो मे मौज उडा़ रहे हैं। हे मानसून जी, आपकी रैना के इन्तजार में हमारे नैना कब से आसमान में टकटकी लगाए बैठे है। नैना ज़रा दगाबाज क्या हुए, मानसून जी आपके बादल तो रंगबाजी पर उतर आए, जलाकर हमारी खाल को लाल कर दिया।
ये सभी प्राकृतिक सेवक अपनी सेवा में खरे नही उतर रहे है, इनकी दो दिन की तन्खवाह कटनी चाहिए। पहले तो आंधी ने फसलो की पैदावार आधी कर दी और अब मानसून से जो सुकून की उम्मीद थी, वो भी लेटलतीफी पर अमादा है। आधुनिकता के इस दौर में प्राकृतिक मानसून के लिए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना, कदाचित उचित नहीं है। प्रकृति के भरोसे बैठे रहना, अब ठीक नहीं है, मानसून में भी एफ.डी.आई. "फटाफट डायरैक्ट इम्पोर्ट" का एक अध्यादेश लाकर मानसून के इम्पोर्ट को सुलभ बनाना चाहिए। हम एक कृषि पर आधारित इकोनामी के बाशिंदे हैं, हमारी इकानामी के लिए मानसून में एफ.डी.आई. बेहद जरूरी है। दुनियाभर में आए रिशैसन का भले ही हमारी मजबूत इकानामी पर मामूली असर हुआ हो, लेकिन प्रकृति के मानसून रिशैसन के लिए एक गंभीर चिंतन की जरुरत है।
रेडियो जाकी घनन घनन घिर-घिर आए बदरा बजाने के लिए बेताब हुए जा रहे है, बदरा ना जाने कौन-सी दुश्मनी का बदला लेने पर उतारू हैं बालीवुड दिमाग पर ऐसा छाया है कि बूँदो की बैछार, घनघनाते मेघ और कौंधती बिजली के बिना प्रेमी दिल तो जैसे  वेदनामय हो जाता है। मानसून जब तक तन -मन को ना भिगो दे, प्रेमी दिलो में रोमांस के लिए रूम नहीं बनता, जैसे-तैसे रूम बन भी जाए तो रूमानी नदारद रहती है मानसून आएगा, बारिश बरसेगी, कीचड़ फैलेगी, कीचड़ में प्रेमी रपटेगा तभी तो होगा "फाल इन लव"। मानसून की कमजोरी, दो दिलो में दूरी की मजबूरी बन गई है। हे मानसून जी, अब आन मिलो, बादलो से कहो कि कुछ हिलो डुलो, बिन बादल सब सून, मानसून "कम सून"।
आधुनिक गणित का घाट-योग सिद्धान्त (व्यंग्य)

योग जीवन की दिशा दिखाता है, जीवन में एक नई स्फुर्ति लाता है लेकिन इस योग ने गणितज्ञो के ज्ञान में जीरो का भाग लगा दिया है। गणित में अनुलोम विलोम में ऐसी गुणा की कैंची लगाई है कि सूत्र मे अनुलोम लगाओ तो परिणाम में विलोम निकलता है। परम्परागत गणित के अनुसार योग के उपरान्त परिणाम बडा़ होगा, वहीं दूसरी तरफ घाट के उपरान्त परिणाम कम प्राप्त होगा। लेकिन आधुनिक गणितानुसार बढे वजन में योग के उपरान्त घटा वजन प्राप्त होता है। इस आधुनिक गणित का आजकल खूब प्रयोग हो रहा है, हरिद्वार के योग से बढे़ वजन को घटाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बनारस के घाट से सीटों को बढाने के काम को बखुबी अंजाम दिया गया। अच्छे दिन के बारे में कोई जो भी सोचता हो लेकिन योग का इतना फायदा तो है ही कि योग अपनाकर हर कोई अपना दिन अच्छा कर सकता है। अब आधुनिक गणित के योग से क्या घटेगा या घाट पर क्या बढेगा, जिसको समझ नहीं आ रहा है, इस आधुनिक गणित का घाट-योग सिद्धान्त जल्द ही समझना होगा।
हर कोई अपने-अपने कर्मक्षेत्रानुसार अपना अलग ही कर्माआसन लगाए बैठा है। कर्मक अपनी टालमटोलासन मुद्रा में अपने कर्तव्य को द्रढ निश्चय से निभा रहा है, तर्क-वितर्क कर चर्चक विरोधासन मुद्रा में अपने कर्तव्य को निभा रहा है, अपने-अपने क्षेत्र के सेवक सेवनयोग का भोग लगाकर अन्तरात्मा को तृप्त करने में जुटे हैं, विवादप्रेमी जैसे ही अपने ही प्रेमजाल में फंसते है, तुरन्त पल्टासन लगा ध्यानमुद्रा में चले जाते है। ललितासन, आसन की बिल्कुल ताजातरीन खोज है। आरोप लगने पर बडे़-बडे़ योग विद्वानों तक के चेहरे लटकते हुए देखे गए लेकिन ये कैसा भौगासन कि गंभीर संकट में भी चेहरा पर लंदन सी चमक फैली हुई थी। लंदन की चमक के सामने तो इंडिया के त्यौहार की चमक भी लाचार दिखाई दे रही थी।
मास्टर जी का लगवाया गया मुर्गासन अबतक का सबसे तीव्र परिणाम देने वाला आसन कहा जाएगा, जबकि घपलासन एक ऐसा चक्राआसन है, जिसके चक्र उधर्वचक्र के चक्कर में चर्चक भी चकरा जाता है, लेकिन परिणाम विचाराधीन ही रहता है। वो अकर्मक जिसका दिन अर्धनिंद्रा मुद्रा में उठासन से शुरु होता है, आफिस में लेट पहुँचने पर मूँहलटक मुद्रा में बोस के डाटासन, कस्टूमर्स की गुस्सैल मुद्रा के दुर्वासन, घर लौटने पर गृहस्वामिनी की लालवर्ण मुद्रा के टिनकासन से होता हुआ, थकान मुद्रा में शवासन की गति को प्राप्त हो जाता है, वो अकर्मक राजपथ के योगासन में भाग लगाने के लिए कौन सी गुणा में कैची चलाएगा। ना जाने, अकर्मक को ये आधुनिक गणित का घाट-योग सिद्धान्त कब तक समझ आएगा।
राजनीति का त्यौहार (व्यंग्य)

त्यौहारों को हमारे देश में विशेष गौरव प्राप्त है। धार्मिक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय त्यौहारों की कतार में हाल के दिनों में एक एल.पी.एल. ललित प्रोग्राम्ड लीगका त्यौहार राजनैतिक हलकों में हाहाकार मचाए हुए है। कोई चोटिल हो रहा है, कोई बोल्ड, कोई छक्का मार रहा है तो किसी की बॉल नोबॉल हो रही है। खेल का मैदान छोड़ राजनीति के मैदान में आज एल.पी.एल. का खूब बोलबाला है। खेल ये एल.पी.एल. ने खेला निराला है, राजनीति के मैदान पर ही राजनीतिज्ञो का पसीना निकाला है। राजनीति पर एल.पी.एल. ने डाला ऐसा प्रभाव है, बाजार में ओंधे मूंह गिरा बहुतो का भाव है। इस प्रकोप से बचने का एक ही उपाय है, मेलमिलाप छोड़ नियत दूरी बनाने में ही बचाव है एल.पी.एल. का त्यौहार हर त्यौहार से न्यारा है, एक दोस्त की बैटिंग है दूसरे को बालिंग के लिए उतारा है।
 
एल.पी.एल. एक पारिवारिक और मेलमिलाप वाला त्यौहार है। इसमे बहु, बहन, बेटी, दामाद सभी अपना बहुमुल्य योगदान दे रहे है। होटल, रेस्त्रां जहां देखो मेलमिलाप हो रहा है, जिनका मेलमिलाप नहीं हो
रहा, उनका मेलमिलाप पर विलाप हो रहा है। जो भी इस पारिवारिक मेलमिलाप का विरोधी है, वो परम्पराओं के आगे बढ़ने में अवरोधी है। एल.पी.एल. ने ना जाने राजनीति और खेल को कैसा मिक्स कर डाला है, कद्दावर राजनीतिज्ञो का भविष्य में इसने भयंकर रिस्क डाला है। जिधर देखो, आज एल.पी.एल. ही छाई है, लेकिन राजनीतिज्ञो के लिए ये मेलमिलाप बहुत दुखदाई है। एल.पी.एल. का ललितासन हर योगासन पर भारी पड़ रहा है। इधर योगासन वालो का चेहरा सफ़ेद पड़ रहा है, उधर ललितासन से चेहरा लंदन सा चमक रहा है।

खेल में खेल कोई नया खेल नहीं है, ये तो पुरातन खेल
का नया नामीकरण है। एल.पी.एल. तो बस सी.डबल्यू.जी. "सिटी वैल्थ गेम" का नाम चेंज है, वो एक पार्टी का था गेम, इसकी सभी पार्टियों तक रेंज है। सी.डब्ल्यू.जी. पर जिसका कापीराइट है, उसी की एल.पी.एल. के विरोध में जारी फाइट हैं, विपक्षी होने के नाते ये उनका राइट है। सी.डब्ल्यू.जी. वालो के लिए गुडलक ललित का लंदन प्रवास हो गया, मुद्दा अब ये बेहद ख़ास हो गया, खेल के  खेल में देखो पप्पू पास हो गया, चुनाव से भी बडा़ ये राजनीति का त्यौहार हो गया ना जाने कितने चौके छक्के लगने अभी हैं बाक़ी, किसके अन्दर क्या है ये तो बस जाने साकी।
राजा आदमी का बिल (व्यंग्य)

गर्मी में चाहिए ठंडी का अहसास तो ए.सी. तो चलाना ही पडे़गा। ए.सी चलेगा तो बिल भी चुकाना ही पडे़गा। ए.सी के कारण आए बढे बिल का दोष, ए.सी. की कम्पनी पर मढ़ना तो कतई सही नहीं है। एक तो गर्मी उपर से ललित गेट की सरगर्मी, दोनों ने पिछले कुछ दिनों में हर किसी को आम सरीखा पका कर पीला कर दिया है। गर्मी से बचने के लिए कुछ लोग हिल पर चले गए। जो हिल पर चले गए वो तो ठीक, लेकिन जो हिल पर नहीं गए, वो एसी का बढा बिल देखकर हिल गए। भला आदमी आज यही सोच रहा है कि ना होती ए.सी की सस्ती किस्तें, ना आज इस भारी-भरकम बिजली के बिल के चक्कर में फंसते।
ए.सी का बिल इस बात पर ज्यादा निर्भर नहीं करता कि ए.सी. तीन स्टार वाला है या पाँच स्टार वाला। इस बात पर जरूर निर्भर करता है कि जिसके घर में ए.सी. लगा है, वो कितना बडा़ स्टार है। एक बार बिल बन गया तो ना तो बिल में घुसने से काम चलेगा, ना धरने पर बैठने से काम चलेगा। बिल को तो दिल बडा़ करके भगतान करने के बाद ही चैन से चिल्ल हुआ जा सकता है। दिल्ली के बढे़ हुए बिलों में चौबिसों घंटे की सप्लाई का भी बहुत बडा़ हाथ है। जिन प्रदेशो में सप्लाई कम है, वहाँ ये समस्या बिल्कुल नहीं है। बल्कि उन प्रदेशों में जनरेटर, इनवर्टर जैसे वैकल्पिक स्रोतो का जी.डी.पी में बहुमुल्य योगदान मिल रहा है। वहीं चौबिसो घंटे बिजली सप्लाई वाले प्रदेशों को जीडीपी का नुकसान तो हो ही रहा है, बिजली के बढे़  बिलों से त्राही मची हुई है।
दिल्ली में ए.सी का बिल नौ हजार से सीधा नब्बे हजार के उपर पहुंच गया, खैरियत ये रही कि दिल्ली में बिजली की दर आधी हो गई हैं। कहीं ये बिल किसी दूसरे प्रदेश का होता तो यही एक लाख अस्सी हजार का हो जाता। किसी प्रदेश के भले आदमी का ये बिल आ जाता तो उसका तो बैठे बिठाए दिल बैठ जाता। गर्मियों का ए.सी. के कारण बढा बिल हर भले आदमी पर भारी है। खैरियत ये है कि दिल्ली तो आम आदमी की है। आम फ़लों का राजा होता है। राजा आदमी का बिल है, क्या फर्क पड़ना है, नब्बे हजार हो या एक लाख अस्सी हजार। आज हर कोई दो समस्याओं से जूझ रहा है, पेट और वेट का लगातार बढना, अब दस प्रतिशत ओर बढ जाएगा, क्या फर्क पड़ता है, बिल भी तो भरना है।
गीदड दहाडे़गा, कुत्ता हिनहिनाएगा (व्यंग्य)

सब सुबह स्वास्थवर्धन के लिए घूमने जाते हैं, लेकिन ज्ञानप्रकाश अपने स्वास्थवर्धन के साथ अपना ज्ञानवर्धन भी करते हैं। सुबह टहलते हुए, आटे के इन्तजार में चीटियों से, रातभर के जगे कुत्तो से, चिडियाओं के चहकने से, मच्छरों की भिन्न-भिन्न से रुबरु होते हैं। ज्ञानप्रकाश आज घूमने निकले तो अजब-गजब नजारा था, कुत्ते की आखें गुस्से से लाल थी, चीटियों की आखों मे नींद भरी हुई थी और खडी़-खडी़ हाथियों की तरह झूम रही थी। कुछ हिम्मत बटोरकर चीटियों की तरफ आटा लेकर जैसे ही ज्ञानप्रकाश के कदम बढ़ते हैं, सारी चीटियाँ एकसुर में चिल्लाती है, ठहरो। हम अभी-अभी जंगल से सभी जानवरों की सभा से लौटे हैं, तुमने हमारे साथ धोखा किया है।
यदि ज्ञानप्रकाश अपनी अभिव्यक्ति किसी भी जानवर के रूप में कर सकते हैं और करते भी हैं, हमने तुम्हे एक-दूसरे के लिए कहते भी सुना है कि कुत्ते की तरह मत भौंक, बिल्ली की तरह मिम्याने लगा, फ़लाना शेर की तरह दहाड़ता है आदि-आदि हमारी माँग है कि बिल्ली को शेर की तरह दहाड़ने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, जरुरत पड़ने पर हाथी भी बिल्ली की तरह मिम्याने के लिए स्वतंत्र हो, गीदड भी बन्दर घुडकी देने की स्वतंत्रता हो, बन्दर को भी हाथी की तरह चिंघाड़ने की स्वतंत्रता हो, गधे को चिडियाओं की तरह चहकने की स्वतंत्रता हो, लोमडी को गधे की तरह ढैचु-ढैचु करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। गधे को गधैया को अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करनी होती है तो भी उसे धैचु-धैचु से ही काम चलाना पड़ता है, गधे को मोर की तरह नाचते हुए अपना प्रेमाग्रह करने की छूट़ मिलनी चाहिए। चीटी को चैटे का प्रेमाग्रह की स्वीकारोक्ति के लिए कोयल की तरह कूँ-कूँ करने का अधिकार होना चाहिए।
हमारी आज की सभा में निर्णय लिया गया है कि हमारी माँग माने जाने तक हम असहयोग आन्दोलन करेंगे, पुतला फूकेंगे, मार्च निकालेंगे, लेकिन अपने अधिकार लेकर रहेंगे, अब गीदड दहाडे़गा, कुत्ता हिनहिनाएगा। ज्ञानप्रकाश ने ने सभी जानवरों को बहुत समझाया लेकिन भारी मशक्कत के बाद भी जब ज्ञानप्रकाश की बात ना बनी तो ज्ञानप्रकाश अपनी अन्तिम कोशिश के लिए शेर को सपरिवार चाय पर बुलाया। ज्ञानप्रकाश ने शेर को समझाया कि तुम इसीलिए राजा हो क्योंकि दहाड़ने का अधिकार केवल तुम्हारे पास है, यदि सभी दहाड़ने के लिए स्वतंत्र हो गये तो तुम्हारी राजा की कुर्सी छिनने में चार दिन भी नहीं लगेंगे। शेर को बात तुरन्त समझ आ गयी और शेर ने तुरन्त घोषणा कर दी कि ये मांग जंगल हित में नहीं है, इसलिए मांग खारिज की जाती है।

फड़फडा़ते बेपर परिंदे        (व्यंग्य)
अगले कुछ मिनट में फटा़फट, कुछ बडी़ सच्ची खबर सुनिए, सीधे "व्हाट्स-ए-गप" से। आओ कुछ अफ़वाह फैलाए, कुछ वाह-वाह जुटा़एं। मुम्बई से भागा डाॅन वापसी कर सकता है, समर्पण की सम्भावना। सुत्रों के हवाले से ये भी खबर है कि डाॅन साथ कुछ छोटा-मोटा भी समर्पण कर सकते हैं। मंदी की मार झेल रहा चीन, अब समुन्द्र से अपनी सेना हटाने की तैयारी में है। ईंधन की खपत कम करने के लिए चीन ने अपनी बुलट़ ट्रेन “डेली” के बजाय “वीकली”चलाने का भी फैसला लिया है। चीन और अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में  भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत की है।
बिजली और पानी के बाद अब पैट्रोल और डीजल के दाम आधे करने के लिए विशेषज्ञों की राय ली जा रही है।  ऐसा करने से बचत बढे़गी और आम आदमी ज्यादा चंदा देने में सक्षम होगा। कोल्ड ड्रिंक से स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव को संज्ञान में लेते हुए, बीयर को भी जनरल स्टोर पर बेचने की छूट मिलेगी, इससे युवाओं का रुझान कोल्ड ड्रिंक की तरफ कम होगा। बुद्धिजीवी समिति का चुनावी चिंतन, हर पार्टी को बारी-बारी से सेवा का मौका देकर चुनाव खर्च बचाया जाए। उस बचत से विकास गतिमान होगा। समिति ने चुनाव बाद अपनी रिपोर्ट देने की बात कही है। सन्नी लियोनी अब वस्त्र मुक्ति अभियान से अलविदा कर, “मैं घूंघट की शर्मीली” नामक सीरियल की हीरोईन बनने वाली हैं।
अपना खिताब जीत कर लौटी साइना के स्वागत में जुटे प्रशंसकों के अभूतपूर्व सैलाब पर काबु पाने में पुलिस को भारी मशक्कत करनी पडी़। महंगाई से जूझते क्रिकेटरों ने अपने भत्ते बढाने की मांग करते हुए, भूख हड़ताल करने की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि अगामी श्रंखला से पहले भत्ते, हर श्रंखला में नई वेशभूषा और सप्ताह में एक दिन रैस्टोरैन्ट में डिनर की उनकी मांग पूरी तरह जायज है। सुना है, इस बार मानसून सत्र हंगामे की भेट़ चढे़गा, हमें लगता है कि ये अफवाह ही हैं, जो सच था, हमने बता दिया। ये समस्त बातें, बेपर परिंदे की तरह मुल्क में जब तब फड़फड़ाती रहती हैं और कुछ चर्चक इस भूसे को चारा बना,  अपना जुगाली कार्यक्रम भी निपटा लेते  है। चर्चक की चर्चा से ज्ञानप्रकाश अपनी सूझ-बूझ बढ़ाता है, फिर सोशल मीडिया पर अपने ज्ञान से सबको सुझाता बुझाता है और ढेर सारी वाह-वाह बटोर ले जाता है।
आओ कुछ तो अफ़वाह फैलाए,
व्हाट्स-ए-गप का चैनल चलाए,
सच्चाई तो कड़वाहट फैलाएगी,
अफवाह फैलाए वाह-वाह पाए।

Friday 1 May 2015


कवर है तो कवरेज है 

एक बार चेहरे पर क्रीम पाउडर सही से लपेट लीजिए, फिर क्या है दुनिया में चाहे जिसे लपेट लीजिएचेहरे पर क्रीम पाउडर लपेटने में कोई कौताही क्यों बरतनी, काले पीले नीले जितने रंग हैं सब के सब झोंक देने चाहिएइन रंगो को रंग समझना नादानी ही कहा जाएगा, ये रंग नही है ये तो मिर्च है जो इन रंगो को देखने वाले की आंखो में झोंकी जाती है। इस रंगीन चेहरे को देखने वाले की आंखो में रंगो की मिर्ची झुकने के बाद देखने वाले को रंगीन चेहरे के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता। आज की सरपट दौडती जिन्दगी में इतनी फुरसत किसको है कि बात की तह तक पहुंचे, आज की दुनिया में चेहरे पर चढ़े कवर के हिसाब से ही कवरेज मिलता है। कवर की बढती कवरेज की सरपट दौड़ ने सब को पट कर रक्खा है। चेहरे पर कवर लगा कवरेज पाने का अधिकार नेताओं अभिनेताओं तक ही सीमित क्यों रहे, आज स्वतंत्र होने के नाते हर कोई चेहरे पर अपना नया रंगीन कवर लगाकर कवरेज पाने के लिए स्वतंत्र है।
इन्दीवर का लिखा गीतदिल को देखो, चेहरा न देखो चेहरे ने लाखों को लूटा हाँ, दिल सच्चा और चेहरा झूठाबेहद खूबसूरत है लेकिन आज काफी कुछ बदल चुका है। आज चेहरा ही देखा जाता है, चेहरे की किताब "फेसबुक" ही आज की सच्चाई है। चेहरे की किताब हिट जाती है या पिट जाती है, यह काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि फेसबुक के कवरफोटो में किसी बड़े नेता या अभिनेता के साथ नज़र आ रहे हैं कि नहीं। फेसबुक के जमाने में टाइमलाइन अर्थात इतिहास जानने की फुर्सत किसी को नहीं है। कवर फोट़ो पर निर्भर करता है कि फेसबुक प्रोफाइल को कवरेज दिलाने में कितनी कारगर होती है। यदि फेसबुक की इलैक्ट्रानिक किताब से कवरेज नहीं मिलता तो फिर प्रिंटिड किताब की तरफ बढा जाता है।
किताब में लिखा क्या है ये बाद की बात है लेकिन किताब का कवर और शीर्षक मे जबरदस्त आकर्षण होना चाहिए, कवरेज में कवर का ही खेल है। यदि किताब से भी कवरेज नही मिलता फिर भी घबराना क्या, यहाँ सम्भावनाएं खत्म नहीं होती। एक किताब से कवरेज नहीं मिलता तो दूसरी किताब लिखी जा सकती है शीर्षक होगा वन बुक इज नाट एनफ”, फिर भी कवरेज नही मिलता तो एक किताब लिखी जा सकती है बुक रिटर्न”, फिर एक किताब किताबो के संकलन की भी लिखी जा सकती हैनाट जस्ट वन किताब”, इसके बाद भी अनेकानेक किताबों की सम्भावनाएं है किताब ही किताबआदि आदि।
किताब से कोई हर्ट हो तो हो जाय कोई हर्ट होगा तो कोई फ्लर्ट होगा। किसी की त्याग भावना में ततैया लगता है तो लग जाय, उन्हे क्या किसी ने मना किया है कि वो किताब ना लिखे। वो भी अपनी एक किताब लिख दे और कर दे अपनी त्यागी भावना को सिद्ध, आने दीजिए बाजार में किताब की एक और किताब, किताब ही किताब।

रावण दहन
ज्ञान ऐसी चीज है जिसे जितना बाटो उतना ही बढता है। ये बात खुद में एक बड़े ज्ञान की बात है। ज्ञानप्रकाश अपनी बात यहीं से शुरू करते हैं। हाल ही में कुछ शानदार दशहरा पार्टी आयोजित की गयी। बालीवुड, हालीवुड और लेटैस्ट एलबम्स के नम्बर्सगानों पर सब झूठ पर सत्य की विजय को सैलीब्रेट कर रहे थे। गोलगप्पे, चाट पकौडी, गुंझिया, चीला जैसे कुछ लज़ीज व्यंजनों की स्टाल वातावरण को लज़ीज बना रही थी। बच्चो की रचनात्मकता बढ़ाने के लिए बच्चो को खुद गेम्स की स्टाल लगाने का मौका भी दिया गया था, जिन स्टाल्स पर बच्चो ने कैसीनो टाइप, प्लेइंग कार्डस आदि के बेहतरीन गेम्स बनाये हुए थे। उधर 15 फुट का शानदार रावण जाने किस बात पर इतना बारूद अपने अन्दर भरे फटने को तैयार खड़ा था, जैसे किसी बात से बहुत नाराज हो। रावण दहन के बाद के लिए हजारी लड़ी, स्काई शाट्स का भी प्रबन्ध था ताकि आसपास के इलाकों में भी रावण दहन की धमक महसूस की जा सके और उन्हे मैसेज दिया जा सके कि यहाँ सत्य की विजय को सैलीब्रेट करने वाले लोग रहते है।
अचानक ज्ञानप्रकाश पार्टी में आ धमके और जैसे ही ज्ञानप्रकाश जी ने अपने ज्ञान का बल्ब दमकाया, भली-चंगी चलती पार्टी की बत्ती बुझा दी। इधर ज्ञानप्रकाश रावण के चरित्र पर प्रकाश डाल रावण के चरित्र को चमका रहे थे, उधर पार्टी की चमक धूल चाटती नज़र आ रही थी। ज्ञानप्रकाश जी समाज के सम्मानित लोगो में थे, सो कोई कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा था। लेकिन जैसे ही ज्ञानप्रकाश ने रावण को अहंकार का पुतला बताया और उसके अहंकार को उसके कुल के विनाश का कारण बताया, पार्टी में हडकंप मच गया। रावण का पुतला बोल उठा, क्या ज्ञान बाट रहे हो, चारो वेदो का ज्ञाता मैं, लंका को सोने की लंका बनाने वाला मैं, अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए मर मिटने वाला मैं, परायी स्त्री को माता के समान रखने वाला मै, फिर मैं अहंकारी कैसे हो गया। मेरा पुतला फूंकने वालो चार श्लोक पढकर तुम ज्ञानप्रकाश बन जाते हो, आज तुम ग्राम में सोना जुटाते हो खुद अपनी बहन बेटियों को असुरक्षा की भावना में जीने को मजबूर करते हो और मुझे अहंकारी बताते हो।
रावण का सुलगता बारूद कुछ कह रहा था कुछ सवाल खड़े कर रहा था, पार्टी में मौजुद सभी लोग अचम्भित थे लेकिन खुश थे। रावण अपने ही बारूद से धूँ धूँ कर जल रहा था, कुछ के चेहरे पर एक डर था, कुछ के चेहरे पर खुशी, कुछ रोमांच, इन सबके बीच के बीच रावण के रूप में बुराई अपने प्रतीक के रूप में दम तोड़ रही थी। रावण के धराशायी होते ही जोरदार आतिशबाजी ने रोमांच को दूना कर दिया और बुराई पर अच्छाई, झूठ पर सत्य की विजय की पार्टी फिर से अपने रुमानी दौर की तरफ आगे बढने लगी। रावण विदाई ले चुका था और अच्छाई बुराई पर चर्चा आरम्भ हो चुकी थी, शाही पनीर जीतता हुआ दिखायी दे रहा था लेकिन महिला वर्ग के आते ही गोलगप्पे अपनी जीत का दम भरने लगे, फीकी होने के कारण दालमखनी पहले ही दम तोड़ चुकी थी। कैशीनो का गेम ताश के पत्तो से कहीं ज्यादा बड़ी रकम इकट्ठी कर अपनी जीत पक्की कर चुका था। मीठे हनी से गानों ने बालीवुड के गानों को धूल चटा दी। इस दशहरा पार्टी में बहुत कुछ जीता और हारा गया। अफसोस जितनी आवाज पटाखो और हनी गानों की बढती गयी रावण का अट्ठाह्स भी उससे कई गुना बढता गया, जो शायद ज्ञानप्रकाश के बहरे कानों तक नहीं पहुँच रहा था।

विजयी सत्य है
ये सत्य भी ना बस, कोने में कहीं छुपा, सुकडा सा बैठा मिलता है, कोई अपने पास पलभर बैठाने के लिए तैयार नहीं है। इसके बावजुद सत्य ये दावा ठोकने से नहीं चूकता कि साँच को आँच नहीं। सत्य के लिए ऐसी आँच कहाँ से लाऊ जो उसकी सिकुड़न दूर कर दे, ये कोई सर्दी की सिकुड़न तो है नहीं कि आंच से दूर हो जायेगी। सत्य और झूठ मे कबड्डी के खिलाडियों की तरह का खेल चलता रहता है, बस डैन झूठ को ही देनी होती है। जो है वो तो है ही, उसकी सत्यता से कौन इन्कार कर सकता है, लेकिन बडी बात तो तब है जो नहीं है फिर भी है, भले ही आज वह एक जुझारु संघर्षशील झूठ है, जो एक स्थापित सत्य को चुनौती दे रहा है। जिसने कुछ ऐसा सोचा जो अभी तक स्थापित सत्य नहीं है अर्थात अभी तक झूठ है, उसी ने दुनिया में नई खोज की है और दुनिया को नयी दिशा दी है। जब-जब कोई झूठ जीतता है, जीतते ही सत्य उसे अपने पाले में खींच लेता है। झूठ तब तक झूठ है जब तक वह जीत नहीं जाता। विजयी सत्य है। आज यहाँ तो कल वहाँ, जहाँ विजय वहाँ उत्सव, यही रीत है। क्या ये विजय उत्सव वर्तमान सत्य की भूतपूर्व सत्य पर विजय का उत्सव है, क्योंकि सत्य तो पहले से ही विजयी है तो फिर उत्सव क्यो?  
बच्चो को भी अपनी परीक्षा में ट्रयु फाल्स के प्रश्नो से रूबरू होना पडता है। प्रथम सत्र में तो यही ट्रयु था कि डा॰ श्री मनमोहन सिंह हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं”, फाइनल परीक्षा आते-आते फाल्स हो गया। आज "श्री नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं“, यही ट्रयु है। कोई विद्धार्थी यदि इसे ऐसे समझे कि कोई सत्य अन्तिम सत्य नहीं होता। आज जो फाल्स है, वही आने वाले समय का सत्य हो सकता है इसलिए फाल्स को एक सिरे से नकारा नहीं जा सकता। वही आज जो सत्य है, वह कल फाल्स हो सकता है, इसलिए तत्कालिक सत्य को अन्तिम सत्य मानना भी सही नहीं है। क्या पुरातन सत्य को सिहांसन से हटाकर नूतन सत्य खुद के लिए जगह बनाता है? नूतन सत्य स्थापना के बाद पुरातन सत्य क्या सत्य नहीं रह जाता? क्या हर सत्य का भूत झूठ है? झूठ और सत्य का क्या पता, जब तक परखा ना जाय। विभीषण ने तत्कालिक सत्यता अर्थात रावण को परखा और अपनी जीवन्तता साबित की। सत्यता की निरन्तर खोज ही जीवन्तता का प्रमाण है। सत्य का रास्ता दुनिया नहीं सह सकती। बापू जी का जीवन देखिये, उन्हे जब कोई दूसरा मारने के लिए तैयार नहीं होता था तो वे अपनी आत्महुति देने पर तुल जाते थे। सत्यता को भी बारम्बार परीक्षा से गुजरना पड़ता है, खुद को सिद्ध करना पड़ता है।
ऐसा कहा जाता है कि सच्चाई कड़वी होती है इसलिए थूक दी जाती है। किसी से सुना था कि हनुमान जी ने एक भक्त से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा। भक्त ने हनुमान जी से हनुमान जी जैसी शक्ति मांगी। हनुमान जी के समझाने के बावजूद हनुमान जी को भक्त की जिद के सामने विवश होकर शक्ति देनी पडी और परिणामस्वरूप भक्त का शरीर फट गया क्योंकि भक्त का शरीर उस शक्ति को समायोजित नहीं कर पाया। शायद सत्य की शक्ति भी ऐसी ही होती है जिसे समायोजित करने के लिए पहले खुद को तैयार कर लेना जरूरी है। तब तक यही सही माना जा सकता है कि सच्चाई कडवी होती है इसलिए इसे थूक दिया जाता है।