अंधकार और कवि
"जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ
पहुँचे कवि" बात बिल्कुल सोलह आन्ने सच
है। जहाँ रवि नही पहुँचते वहाँ कौन पहुँचता है? वहाँ पहुँचता है अंधकार। अंधकार और कवि का चौली
दामन का साथ है, इसलिए सारे कवि सम्मेलन रवि की अनुपस्तिथि में रात में होते हैं, जहाँ रवि हो वहाँ कवि पहुँचते ही नही
हैं। बाते भी सारी रात की ही करते हैं जैसे दिन से
कोई दुश्मनी हो, सूरज में सारी दुनिया देखती है,
कवियो को सब कुछ चाँद में ही नजर
आता है। दुनिया को चँदा गोल नजर
आता है कवियो को चकोर नजर आता है। रात के दो दो बजे तक कवि सम्मेलन करते हैं और कहते हैं कि
इस रात की तनहाई में आवाज ना दो और श्रोताओ की आवाज बन्द हो जाय तो फिर कहेंगे कि ताली बजाओ, अपनी उपस्तिथि दर्ज
कराओ। कवि भी नाना प्रकार के
होते है, हास्य रस
कवि, वीर रस कवि, श्रगार रस
कवि, आदि आदि।
हास्य रस के कवियो की
हालत ऐसी होती है जैसे घर से इतने डरा के भेजे गये हो कि दुनिया हंस ले लेकिन कवि
के चेहरे पर हंसी नही आनी चाहिए।
कुल मिला के हंसी आनी चाहिए वो खुद को आए या दूसरो को, दूसरे की पर ही छाती ठोक लो
क्या फर्क पड़ता है। हास्य के
कवि का अन्दर का दर्द कोई नही समझता।
कवि कितना भी चिल्लाले कि
हमारे यहाँ शादी से पहले प्रेम का कोई चांस ही नही है, कोई ध्यान नही देता कि शादी
से पहले प्रेम ना होने का कितना बडा दर्द है? वीर रस के कवियों की बडी अजीब स्तिथि है,
उम्र कितनी भी हो जाय लेकिन आवाज इतनी कडक होती है कि देश के दो चार दुश्मन तो आवाज सुन कर ही भाग
जाय। संसद से सवाल जबाब ऐसे होता है जैसे आधी संसद कवि सम्मेंलन सुनने के लिए
श्रोताओ में ही बैठी हो। वीर रस के कवियो की कवि सम्मेलन में बडी महत्ता है, यदि श्रोताओ की ध्यानमग्नता
की कमी से कवियों का ध्यानभंग हो रहा होता है, ऐसी विपरीत परिस्तिथियों
में किसी वीर रस के कवि को बुला लिया जाता
है, कुछ श्रोतागण घबराकर शान्त हो जाते हैं, बचे हुए उन्हे देखकर चुप्पी साधनें में अपनी
भलाई समझते हैं। श्रंगार रस के कवि युवाओ
के बहुत प्रिय होते हैं, यूनिवर्सिटीज आदि के कवि सम्मेंलन में इनकी बेहद मांग
होती है। छात्रो को अपने कोर्स चाहे विषय सूची याद
हो ना हो, लेकिन इन कवियो की कविता जबानी याद होती है।
हर कोई अपनी अच्छी छवि बनाना
चाहता है लेकिन इस मामले मे कवि पीछे रह जाते है, कवि की कोई छवि नही होती। ये
किसी एक दो कवि की बात नही है, बल्कि किसी भी कवि की छवि
नही होती। कवि की छवि हो भी नही सकती क्योकि छवि रवि के बिना नही बन सकती और कवि
वहाँ पहुँचते है जहाँ रवि नही पहुँचते। कवि को किसी छवि की जरुरत
भी नही होती क्योकि इस सम्मेलन की जो खबर छपती है, उसमे छाया से पहले कवि के
शब्दो पर नज़र जाती है।