Sunday 6 July 2014

बोल मीठा बोल
एक कहावत है कि मीठा बोलने वाले की मिर्च भी बिक जाती है कुछ लोगो की बाते इतनी मिठास होती है कि बातो के बाद रसगुल्ला भी खाओ तो फीका ही लगता है। चाय के शौकीन  गंगु पर एक मीठी बातों वाले साहेब की कुछ मीठी बातें कहर बन कर बरसी। मीठी बातो के कहर से गंगु की चाय से मिठास ऐसे गायब हुई जैसे उत्तर प्रदेश से बिजली। चाय के शौकीन गंगु ने  चाय  में एक से दो और फिर दो से चार चम्मच चीनी डालना शुरु कर दिया लेकिन चाय है कि मीठी होने का नाम ही नही ले रही। जब चाय मीठी नही हुई तो गंगु ने अपने कुछ इष्ट मित्र मंडली  में इस मुद्दे को उठाया, उनसे प्राप्त सुझावो को एक एक कर अपनाया।

एक मित्र ने कहा कि नमकीन खाओ इसलिए कुछ नमकीन खायी लेकिन नमकीन तो जैसे मानसून से पहले ही सील गयी हो, करारापन तो दूर, गला भी कडवाहट से भर दिया। एक सज्जन ने बाताया कि हरी मिर्च खाओ, चाय मीठी करने का ऐसा जुनून चढा था कि आंखे लाल होती गयी, आंसुओं की अविरल धाराएं बह निकली लेकिन आव देखा ना ताव एक एक करके पूरी आधा किलो हरि मिर्च खा गये, लेकिन चाय फिर भी मीठी नही हुयी। किसी ने बताया कि नीम के पत्तो का काढा बनाकर पियो, किसी ने बताया कि अमरूद के पत्तो का काढा बनाकर पियो , सब पिया लेकिन चाय मीठी नही हुयी। समस्या गंगु के रिश्तेदारो तक फैल गयी, हालचाल पूछने के लिए रिश्तेदारो का तांता लग गया। गंगु का दूर का रिश्तेदार जो पडौस  में ही रहता था, चाय की मिठास लौटाने का शर्तिया इलाज बताते हुए उसने एक बोरी करेले गंगु के आंगन  में पटक दिये, बोला! पुराना नुख्सा है एक हफ्ते करेले के रस का सेवन करो और मिठास वापिस पाओ। मरता क्या ना करता, गंगु ने करेले को भी आजमाया, नाक सकोड हफ्तो करेले का रस पीते पीते गंगु के नाक पर जैसे करेला छप गया, लेकिन नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात। गंगु की समस्या अब एक बिमारी का रूप लेती जा रही थी। गंगु का पूरा परिवार गंगु की बिमारी को लेकर गमगीन था। गंगु के परिवार वाले उसे एक पुराने रोगो को जड़ से खत्म करने वाले वैद्ध के पास ले गये। गंगु को विभिन्न प्रकार की औषधि और काढे़ पिलाये गये, विभिन्न प्रकार की भस्में खिलायी गयी। इधर गंगु की बिमारी लाइलाज हो चली थी, उधर पैसे कि तंगी से गंगु का परिवार पंगु हो चला था। किसी ने भूत-प्रेत का साया बताया तो उसका भी उपाय कराय़ा लेकिन गंगु की चाय  में मिठास नही लौटी

गंगु अपनी बिमारी से इतना परेशान हुआ कि सोचते-सोचते गंगु मुर्छित हो गया, मुर्छावस्था  में गंगु को एक आवाज कांनों  में पड़ी कि जिसके पास से ये बिमारी लगी है इसका इलाज भी वही मिलेगा। मुर्छा टूट़ते ही गंगु  मीठी बातो वाले साहेब के पास पहुंच गया। मीठी बातो वाले साहेब ने गंगु की बाते ध्यान से सुनी  और  कहा कि गंगु तुमको खुश होना चाहिए। जितने भी बड़े आदमी होते है वे फीकी चाय पीते है, अब तुम्हारी चाय फीकी हो गयी है, इसका मतलब ये है कि अब तुम बडे़ आदमी बनने वाले हो। गंगु वापसी लौटते हुए यही सोच रहा था कि वह कितना बेवकूफ है, देखते ही देखते वह इतना बडा़ आदमी बन गया और वह खुद को बीमार समझ रहा है। कितने अच्छे है मीठी बातो वाले साहेब ने   बातो ही बातो  में समस्या जड़ से खत्म कर दी