Tuesday 11 August 2015

राजा आदमी का बिल (व्यंग्य)

गर्मी में चाहिए ठंडी का अहसास तो ए.सी. तो चलाना ही पडे़गा। ए.सी चलेगा तो बिल भी चुकाना ही पडे़गा। ए.सी के कारण आए बढे बिल का दोष, ए.सी. की कम्पनी पर मढ़ना तो कतई सही नहीं है। एक तो गर्मी उपर से ललित गेट की सरगर्मी, दोनों ने पिछले कुछ दिनों में हर किसी को आम सरीखा पका कर पीला कर दिया है। गर्मी से बचने के लिए कुछ लोग हिल पर चले गए। जो हिल पर चले गए वो तो ठीक, लेकिन जो हिल पर नहीं गए, वो एसी का बढा बिल देखकर हिल गए। भला आदमी आज यही सोच रहा है कि ना होती ए.सी की सस्ती किस्तें, ना आज इस भारी-भरकम बिजली के बिल के चक्कर में फंसते।
ए.सी का बिल इस बात पर ज्यादा निर्भर नहीं करता कि ए.सी. तीन स्टार वाला है या पाँच स्टार वाला। इस बात पर जरूर निर्भर करता है कि जिसके घर में ए.सी. लगा है, वो कितना बडा़ स्टार है। एक बार बिल बन गया तो ना तो बिल में घुसने से काम चलेगा, ना धरने पर बैठने से काम चलेगा। बिल को तो दिल बडा़ करके भगतान करने के बाद ही चैन से चिल्ल हुआ जा सकता है। दिल्ली के बढे़ हुए बिलों में चौबिसों घंटे की सप्लाई का भी बहुत बडा़ हाथ है। जिन प्रदेशो में सप्लाई कम है, वहाँ ये समस्या बिल्कुल नहीं है। बल्कि उन प्रदेशों में जनरेटर, इनवर्टर जैसे वैकल्पिक स्रोतो का जी.डी.पी में बहुमुल्य योगदान मिल रहा है। वहीं चौबिसो घंटे बिजली सप्लाई वाले प्रदेशों को जीडीपी का नुकसान तो हो ही रहा है, बिजली के बढे़  बिलों से त्राही मची हुई है।
दिल्ली में ए.सी का बिल नौ हजार से सीधा नब्बे हजार के उपर पहुंच गया, खैरियत ये रही कि दिल्ली में बिजली की दर आधी हो गई हैं। कहीं ये बिल किसी दूसरे प्रदेश का होता तो यही एक लाख अस्सी हजार का हो जाता। किसी प्रदेश के भले आदमी का ये बिल आ जाता तो उसका तो बैठे बिठाए दिल बैठ जाता। गर्मियों का ए.सी. के कारण बढा बिल हर भले आदमी पर भारी है। खैरियत ये है कि दिल्ली तो आम आदमी की है। आम फ़लों का राजा होता है। राजा आदमी का बिल है, क्या फर्क पड़ना है, नब्बे हजार हो या एक लाख अस्सी हजार। आज हर कोई दो समस्याओं से जूझ रहा है, पेट और वेट का लगातार बढना, अब दस प्रतिशत ओर बढ जाएगा, क्या फर्क पड़ता है, बिल भी तो भरना है।

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